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संचिल्लउ रुप्पिणिहि मा करिहसि असुहु तुहुं मई पुट्टिण अइमुत्तइण gg efaes rare हरि
[२६२६]
इय मुणेविणु चित्तु हरि-समुहु
नवमभवि रुपिणिहरणु
[२६२७]
जइ-वि चूलिय चलइ सुर- गिरिहि
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पुरउ धाइ जंपर - सु-लोयणि । वाल- भावि जं तुझ कारणि ॥ साहि हु असि । रुप्पिणि-तरुणिहि रेसि ॥
जइ खीरोयहि सइ तु-वि तारिस - मुणि-रणइय चितेविणु निय-करिहिं लिहिवि लेहु वियरेसु । तयणंतरु तुह इच्छियउं सुयणु हउं वि पूरे ॥
धाई रुपिणि तणु कहो वि-हु वलिण सह asures सिय- पंचमिहि हत्थुत्तर - जुत्तई ससिहिं
ज - वि तरणि पच्छिमह उगई । वयणु नेव उम्मग्गि लग्गइ ||
[२६२८]
अह लिहेविणु लेहु वियरेs
विउलि
[२६२९]
पुव्वागय-धाइ - जय
मणहरि जक्ख - आययणि रुप्पिणिम्मि संपत्तु अइरिण । ता दढयरु तुट्ट-मण अंव-धाइ वलभद-वयणिण || लहु गंधव्व-विवाह - विहि अणुसरण note | arator रुपिण-तरुणि निरु पसरिय - हरिसेण ॥
अंव - धाइ पेसवर कहह । सम्मु मुणिवि भावत्थु लेहह || सोमवार मज्झन्नि । सर - पालिहिं आसन्न ॥
१६२८. ५. क. जा वत्थु.
२६१९. ४. क. तुदट्ठमणु corrected as तुट्ठमण
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