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नेमिनाहचरिउ
[२८५२
[२८५२]
नमहिं एयह तियस-असुरिंदविज्जाहर-किन्नर वि इमिण भुवणु सयलु वि विहूसिउ । एयस्सु जि दुविणउ कुणहिं तेहिं धुवु अप्पु दूसिउ ॥ समुदविजय-वसुहाहिवह कुल-गयणंगण-चंदु । वावीसइमु जिणाहिवइ एहु सु नेमि-जिणिंदु ॥
[२८५३]
नियय-बंधुहु हरिहि नेहेण उवरोहेण य सउरि- धरणि-पहुहु निय-जणय-वंधुहु । साहिज्जह हेउ इह पत्तु एहु समुहु जरसंधुहु ॥ एत्थंतरि केण-वि भणिउ नणु जइ एम्ब त मूहु । किह जरसंधु इमेहि सह दीसइ रणि आरूहु ॥
२८५४]
कवणु तेहिं वि समगु रण-रंगु जह पणमहिं सुरवर वि लहहिं विजउ तेसि जि पसाइण । ता इयरिण भणिउ-नणु मुयसु मुयसु किमिमिण वियारिण ॥ अद्वि-मित्त-निम्मिय-सिरिण जो गिरि-भेइ जएइ । सो भंगह विणु अन्नयरु किमु केरिसडे लहेइ ॥
[२८५५]
तरिवि गिरि-नइ अप्पु कय-किच्चु मन्नंतउ जलनिहि वि जो तरेउ वाहाहिं इच्छइ । सो कुविय-कयंत-घरि निव्वियप्पु किं किं न गच्छइ ॥ जहिं न मुणिज्जइ अप्प-पर- अंतरु गरुएहिं पि । मरियव्वउं तहिं दंगडइ नित्तुलु इयरेहिं पि ॥ २८५४. ६. क. अट्ठ.
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