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________________ २८५१ ] कजर संधवि [ २८४८] तुरय-कुंजर - सुहड-रह- रयण परिचुक्कडं गय-सरणु भय-वेविर-संकुइय स- करुणु दीणु दुहावणउं दुम्मणु सुन्न सरीरु । वियलिय-दप्पु विमुक्क-भड- वाउ निवाडिय-वीरू || मिग-कुलु व्व लुद्धइण रुद्धउं । अंगुवंगु निय- दुकय-वद्धउं ॥ Jain Education International 2010_05 [ २८४९] विरल - माणुस - मे - संचारु न य निमिसु वि चलवल नेमि कुमारिण मोहियउं fast पेक्खिरु पहु- समुह हु महाविइ-वलु निस्सिरीउ गिण्हम्मि छित्तु व । वयइ नेय कट्ठम्मि चित्त व ॥ मोह - विज्ज-सत्थे । एगग्गिण हियएण ॥ [ २८५० ] तयणु निहणिय - दोस- माहप्पु मुसुमूरिय-तम- पडल अप्पड - उ पहु अह हुं वलि कि-वि भणहिं जो सुम्मंतर आसि किल [ २८५१] अवर पहि जं तस्सु न एरिसय तत्ते सुरिंदु इहु जपहिं - नणु सो कणय पहु किं न वियाह तुम्हि सिरि २८४९. ५. कंटुंमि. रिउहुं गमिर जय - सिरि निसेes | वाल-रवि व रण-गिरिहिं रेहइ || एहु सु हरि-गोवाल | काल-कंस - खय-कालु ॥ नणुन सो हु सत्ति पुण्य-पुरिसिहिं विवन्निय । हरिहि सेन्नि पत्तो ति अन्नि य ॥ इहु वेरुलिय-च्छाउ । नेमि हरिहि लहु भाउ ॥ For Private & Personal Use Only ६३५ www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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