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[२०८५
नेमिनाहचरिउ
[२०८५]
चारुदत्तु वि तेहिं खयरेहि पणमेप्पिणु गुरु-पइहि नीउ नियय-ठाणम्मि स-हरिसु । ता पयडिउ निय-जणय- मइहिं असमु तसु पूय-पगरिसु ॥ अह गंधव्वस्सेण निय- भइणि समप्पिवि तस्सु । जंपिउ जह – वसुदेवु इह वीवाहिहइ अवस्सु ॥
[२०८६]
जमिह अम्हहं कहिउ चिट्टेइ नेमित्तिएण एरिसउं दिक्ख-गहण-समयम्मि पिउण वि । आइटउं आसि जह ठविवि चारुदत्तस्स भवणि वि ॥ मोएयव्य कुमारि इह सो वि गरुय-रिद्धीए । परिणाविस्सइ वणिय-वरु नियय-धूय-बुद्धीए ॥
[२०८७]
अह गहेविणु कुमरि कय-तोसु खयरिंद-सम्माणियउ मिलिय-रयण-धण-कणय-वित्थरु । तक्कालागइण तिण मुरिण दिन्न-आहरण-सुंदरु ॥ वहु-विज्जाहर-सुर-नियर- सहिउ कुमारि गहेवि । चंपहं पुरिहिं पहुत्तु हउं एहु सु इम वि भणेवि ॥
[२०८८]
जिणइ जो मई वीण-वायणिण सो परिणइ न-उ इयरु इय ललंत चिट्टइ निरंतरु । चिर-कालह आगयउ तुहुँ वि एत्थ सव्वंग-सुंदरु ॥ इय निसुणिवि वसुदेवु परितुट्ठउ परिणइ कन्न । इयरि वि तिण सह अणुहवइ विसय-सुहई अ-सवन्न ॥
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