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३१६८]
नेमिवुत्तंतु [३१६५]
मज्झ धूयहं तुज्झ अवरधु किं केरिसु जेण तई तेम्व वरिवि तइयह वि उज्झिय । न य घरह न वारह वि कीय एहि ता तुहु कु-वुद्धिय ॥ निय-दुन्विलसिय-तरु-फलई गेण्हमु मह हत्थेण । इय अवराहिउ मुणि-वसहु वयणिण अ-पसत्थेण ॥
सविह-देसह गहिवि मिउ-पिंडु आहारउ करिवि तमु सीसि खिविवि खायर-हुयासणु । वंधेविणु निय-करिहि मुट्ठि नठु सो पाव-भणु ॥ तयणु सिरोवरि पज्जलिर जलणिण ताविज्जंतु । अणु-खणु डज्झिर-मोह-मलु कणगु व परिसुझंतु ॥
[३१६७]
मणिण सुमरइ पंच-नवकारु आलोयइ दुक्कयई सम्मु दुसह वेयणहियासइ । चिंतेइ य - मुहु दुहु वि न कु-वि कसु-वि किंचि-वि पयासइ ॥ उज्झिवि पुव्व-समज्जियई निय-सुह-असुहाई पि । अरि जिय उवरि म कसु-वि तुहुं परिकुप्पहि ईसि पि ॥
[३१६८]
इय विसुज्झिर-मुक्क-लेसस्सु निग्याइय-घाइयह निहय-राय-दोसावयासह । उज्जालिय-निय-कुलह झत्ति तुट्ट-संसार-पासह ॥ पव्वण-सारय-रयणियर- किरणावलि-संकासु।। गयसुकुमाल-महारिसिहि हुउ वर-नाण-पयासु ॥
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