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३०८३]
'नेमिवुत्तंतु [३०८०]
अहव वीयह महिहिं एक्कह वि परिवड्ढइ मूल अहि अंकुरो उ उड्ढम्मि वच्चइ । ता वत्थु-सहावु इह विसम-रूवु भुवणम्मि वट्टइ ॥ इय चिंतंती राइमइ रहनेमिहि वह-भेउ । वियरइ धम्मुवएसु सिव- सुह-सय-साहण-हेउ ॥
[३०८१]
भणइ पुणु - नणु सुहय छुहियम्हि वियरेसु य किं-पि मह भोयणु त्ति ता मोह-मूढिण ।। परमन्नु कराविउण दिन्नु तीए इयरी वि बमिउण ॥ घेत्तुण य कच्चोलइण तं जि पाउमारद्ध । अह - किह वमियउं पियसि इय इयरिण स उवालद्ध ॥
[३०८२]
भणइ - नणु जइ एम्ब ता हउं वि वमियम्हि नेमि-प्पहुहूं किह णु तं पि मई रमिउमिच्छसि । उज्झेविणु इत्थियणु चरसु चरणु जइ मुहई वंछसि ॥ इय जुत्तिहि नाणा-विहिहि भयवइ-राइमईए । सो रहनेमि विवोहिउण लाइउ चरण-रईए ॥
[३०८३]
एत्थ-अंतरि कण्हु विन्नत्तु उज्जाण-वालग-नरिण पहु तिलोय-पहु-नेमिनाहह । चउपन्न-वासर-अणुक्कमिण गमिय छउमत्थ-भावह ॥ विहरिय-नाणाविह-महिहिं सु-प्पवित्त-चित्तस्सु । रेवय-गिरि-सहसंव-वणि वर-काणणि पत्तस्सु ॥ ३०८२. ९. क. चरणईए.
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