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२१०८]
नवमभवि वसुदेववृत्तंतु
[२१०५
मरिवि जायउ भवण-चासीण महकाल-अभिहाणयहं मज्झि तियस-पहु परम-अहमिउ । निय-नाणिण परिमुणिवि वइयरो वि निय-पुव्व-जम्मिउ ॥ चिंतिवि जह – सयर-प्पमुह नरवइ-अहम ति सव्वि । नरइ निवाडिवि हरहुं मइ पर पिययम गहियव्वि ॥
[२१०६]
मुणिवि पुणु पसु-जन्न-विहि-कहण. अवराहिण सुत्तिमइ- पुरिहि नयर-लोइण समग्गिण । निव्वासिउ पव्वयगु कूर-कम्म-परिणइ-निसग्गिण ॥ सो महकाल-सुराहिवइ अहम-चरिउ महुपिंगु ।। आवइ पव्वयगह पुरउ भणइ - भणसि तुहुं चंगु ॥
[२१०७] - किंतु पाविण नयर-लोएण अविवेय-चहुलत्तणिण तुहुं वि एम्ब अवगणिउ संपइ । जं खीर-कयंवगु वि तुज्झ जणउ एमेव जंपइ ॥ तसु उवझायह पुरउ तई मई वि हु इहु जि सुणीउ । संपइ पुणु पेक्खेवि तुह नायर-जणु अ-विणीउ ॥
[२१०८]
स-गुरु-वंधव-नेह-गुण-बद्ध हउं पत्तउ एत्थ तुह जणिण जणिउ अवमाणु पिक्खिवि । अह पेक्खसु जे कुणहुँ इय भणेवि बहु-भेउ सिक्खिवि ॥ सुरवइ-अहमु सु पुरि सयलि जियहं विउव्वइ मारि । अ-सिवाणि वि नाणा-विहई तहिं तारिसि अवगारि ॥
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