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२९४० ]
कण्हचरित
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[२९३७]
भणइ - सुंदरि माय तुहुँ मज्झ सरणु च्चिय तुहुँ जि मह इय पसीय जीवियह रक्खहं । तयणंतर दोवइहिं भणिउ एहु भणियव्व-दक्खहं ॥ जह - नरवर मुक्काउहउ गंतु हरिहि सविहम्मि । मई मुंचसु ता तूसिसइ मुर-रिउ तुह उवरिम्मि ॥
[२९३८]
अह सु दोवइ-पुरउ काऊण गहिऊण अणेगविह- वत्थ-रयण-आहरण मणहर । पय-पूय करेवि तसु भणइ - मज्झ अ-विणय अ-सुंदर ॥ सव्वे-वि हु तुहं महु खमसु तयणंतरु कण्हेण ।। वियरिउ तहिं पट्टीए करु पगइहिं पणय-पिएण ॥
_ [२९३९]
तयणु जलनिहि-सविह-पत्तेण गच्छंतिण निय-धरहं पंचयन्नु निय-संखु पूरिउ । संख-स्सय-पडिरविण धरणि-विवरु अवरु वि वहिरिउ ॥ अह चंपा-पुरि-वासिइण अद्ध-भरह-नाहेण । हरिण कविल-नामिण सुणिउ जिण-सविहम्मि ठिएण ॥
[२९४०]
तयणु - नणु मह संखु केणेस आऊरिउ इय मुणिवि पुट्ठ पुरउ तहाण-वासिहिं । जिण-इंदह सामिण वि कहिउ पुव्व-वइयरु विसेसिहि ॥ अह - पहु नेमि-सहोयरह तसु कण्हह मिलिहेसु । इय भणिउण उहिरु कविलु भणिउ जिणिण स-विसेसु ॥ २९३९. ८. क. हरि कविल. २९४०. २. आऊरियउ ३. क. पुरओ,
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