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________________ ५२० [ २२८२ नेमिनाहचरिउ [२२८२] सुलस पुणु हरिणेगमेसेण जीवाविय मज्झ सुय इय मुणंत परम-प्पमोइण । कीलावइ अंगरुह वइहमाण-वहुविह-विणोइण ॥ पत्तावसरु कलायरिय- चलण-मूलि चिटंत । एए छस्संख वि कुमर पढहिं गुणिहिं उदयंत ॥ जहा - [२२८३] नामेण अणीयजसो पढमो वीओ अणंतसेणो त्ति । तइओ य अजियसेणो अभिणय-नामो उण चउत्थो ॥ [२२८४] देवजस-सत्तुसेणो पंचम-छट्ठा य रूव-वल-कलिया । सिरि-वच्छंकिय-वच्छा पाविय-सप्पुरिस-माहप्पा ॥ इओ य [२२८५] नियय-तणयहं मुहई अ-नियंत पेक्खतिय पुत्तवइ विलय-सहस चिहंत स-हरिम् । सिरि-देवइ-देवि निय- मणिण खेउ उव्वहइ अ-सरिसु ॥ झूरेइ य अप्पाणु जह हउं जि पाव जिय-लोइ । जा न मरहुं फुट्टिवि हियउं एरिसि तणय-विओइ ॥ [२२८६] इय सु-दुस्सह-दुक्ख-पब्भार आऊरिय-गल-सरणि गलिर-नयण जल-सित्त-वयणिय । कह-कहमवि उ अइगमइ काल को-वि सा हरिण-नयणिय ॥ अवरम्मि अवसरि निसिहि मज्झ-रत्त-समयम्मि । पेच्छइ सत्त महा-सिमिण सुह-निसन्न सयणम्मि ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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