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नेमिनाहचरिउ [२२८२]
सुलस पुणु हरिणेगमेसेण जीवाविय मज्झ सुय इय मुणंत परम-प्पमोइण । कीलावइ अंगरुह वइहमाण-वहुविह-विणोइण ॥ पत्तावसरु कलायरिय- चलण-मूलि चिटंत । एए छस्संख वि कुमर पढहिं गुणिहिं उदयंत ॥
जहा - [२२८३] नामेण अणीयजसो पढमो वीओ अणंतसेणो त्ति ।
तइओ य अजियसेणो अभिणय-नामो उण चउत्थो ॥ [२२८४] देवजस-सत्तुसेणो पंचम-छट्ठा य रूव-वल-कलिया ।
सिरि-वच्छंकिय-वच्छा पाविय-सप्पुरिस-माहप्पा ॥ इओ य
[२२८५]
नियय-तणयहं मुहई अ-नियंत पेक्खतिय पुत्तवइ विलय-सहस चिहंत स-हरिम् । सिरि-देवइ-देवि निय- मणिण खेउ उव्वहइ अ-सरिसु ॥ झूरेइ य अप्पाणु जह हउं जि पाव जिय-लोइ । जा न मरहुं फुट्टिवि हियउं एरिसि तणय-विओइ ॥
[२२८६]
इय सु-दुस्सह-दुक्ख-पब्भार आऊरिय-गल-सरणि गलिर-नयण जल-सित्त-वयणिय । कह-कहमवि उ अइगमइ काल को-वि सा हरिण-नयणिय ॥ अवरम्मि अवसरि निसिहि मज्झ-रत्त-समयम्मि । पेच्छइ सत्त महा-सिमिण सुह-निसन्न सयणम्मि ॥
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