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२२९० ]
नवमभवि कण्हजम्मु
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तं जहा
[२२८७]]
दरिउ कुंजरु फुरिउ हरि-पोउ पसरंतउ जलणु जय- जंतु-जाय-मणहारि सुर-घरु । महु-लुद्ध-महुयर-नियरु पउम-संडु उदयंतु दिणयरु ॥ तयणु महल्लउ परिकणिर- किंकिणि-जाल-रवन्नु । पेच्छइ पविसिरु मुह-कमलि सयल-सिविण-मुहवन्नु ।
[२२८८].
अह समुट्टिवि कहइ सउरिस्सु इयरो वि अस्थाणियहं उवविसेवि गुरु-हरिस-निब्भरु । निय-सिविण-पाढग-नरहं कहइ देवि-सिविणाण वित्थरु ॥ ते वि-हु एगत्तिण हविवि परिभाविवि सत्थत्थु । साहहि वसुदेवह सविहि एहु सिविण-परमत्थु ॥
[२२८९]
नाह हविहइ तुज्झ सुय-रयणु भरहद्ध-वसुंधरह सामि-सालु संजमिय-दुज्जणु। जय-वज्जिर-जस-पडहु दुसह-तेउ सुहि-नयण-रंजणु ॥ अहवा किं इयरिण बहुय- विहल-वयण-जालेण । तुह हविहइ भुवणब्भहिउ नंदणु सुकय-फलेण ॥
[२२९०]
तयणु पमुइउ स-पिउ वसुदेवु मुहि-सयण समुल्लसिय पगइ-लोगु अंगि वि न मायइ । सक्कारिय सिविण-वुह देवई वि निय-मणिण भायइ ॥ आयन्निवि सुय-रयण-गुण सरिवि कंस-वुत्तु । पेक्खिवि सत्त महा-सिविण तह रिउ-जणु आवतु ॥ २२८७. ९. सिमिण.
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