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नवमभवि वसुदेववुत्तंतु [२१७०] एयाई अन्नाणि वि दिन्नाई सुभूम-चक्किणा जाई।
ससुरस्स मेहनायस्स ताई सयलाई सस्थाई ॥ [२१७१] जायव-कुल-गयणंगण-मंडण पव्वण-विहावरी-रमणो ।
दहिमुह-नहयर-पुरओ गिण्हइ जह-भणिय-विहि-पुव्वं ॥ [२१७२] अह दहिमुह-पमुहेणं नहयर-निवहेण परिवुडो चलिओ ।
वसुदेवो य खणेणं दिवितिलय-पुरम्मि ॥ [२१७३] अह तेण सत्तुणा सह जायं समरं तहिं महाघोरं ।
माहिंदत्थेण सिरं छेत्तुं च तिसेहर-निवस्स ॥ [२१७४] मोयाविउं समप्पइ पुत्ताणं विज्जुवेगमह सउरी ।
मुंजेइ सयं रज्जं तत्थ समं मयणवेगाए ॥ [२१७५] जाओ य अणाहिही नाम सुओ महियलम्मि विक्खाओ ।
अवरावसरे सिद्धाययणे वंदेउ जिण-इंदो ॥
[२१७६]
नियय-दइयह समगु वसुदेवु जा पत्तउ निय-नयरि ताव कह-वि सुप्पणहि-नामिण । भइणीए तिसेहरह नयरु सयलु जालिउ खणद्धिण ॥ अवहरिऊण य रायगिह- पुरह वहिम्मि विमुक्कु । सउरि-कुमरु अह ससि-विमल-कलहं कलावि अ-चुक्कु ॥
. [२१७७]
गंतु सालहं जूययाराण परिकीलिवि कं-चि खणु कोडि एग कणयह जिणेप्पिणु । वियरेविणु मागहहं निव-विहीए भोयणु करेप्पिणु ॥
जा परिकीलइ कं-चि खणु ता तमु पुरह पहुस्सु । परिसाहिउ नेमित्तिइण जह तुह नाह अवस्सु ।। २१७३. १. क. तहि.
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