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नेमिनाहचरिउ तहा हि
[२१६५]
अत्थि एत्थ वि गिरिहिं दिवितिलयअभिहाणिण विस्सुयउं नयरु तत्थ हय-सत्तु-खेयरु । परिचिट्ठइ खयर-वइ पत्त-कित्ति नामिण तिसेहरु ॥ तस्स य केण-वि नहयरिण निम्मल-गुणहं निहाण । उवएसिय इह ससि-वयण मयणवेग-अभिहाण ॥
[२१६६]
तेण मग्गिय एह मह भइणि निय-तणयह सुप्पगह हेउ न उण अम्हाण जणगिण । सिरि-विज्जुवेगाभिहिण तमु विइन्न तो फुरिय-कोविण ॥ वंधेवि हढिण तिसेहरिण नीउ जणउ अम्हाण। अम्हे वि-हु तमु भय-विहुर इह आगया पलाण ॥
[२१६७]
ता पसीउण कुणसु नर-रयण निक्कारण-कारुणिय वंध-मोक्खु अम्हाण जणयह । गिण्हेसु य आउहई मंत-सिद्ध खय-कर विवक्खहं॥ अम्ह अउन्नहं कुल-कमिण समुवागयइ इमाई । तुह चिर-संचिय-सुह-भरहं वंछियत्थ-जणयाई ॥
जहा - [२१६८] वंभसिरं नामत्थं अग्गेयं वारुणं च माहिदं ।
जसदंडं ईसाणं वायव्वं वंध-मोक्खं च ॥ [२१६९] सल्लुद्धरणं वण-रोहणं च उच्छायणं च लोगस्स ।
हरणं छेयणमुजिभणं च सव्वत्थ-छेयं च ॥ २१६५. ३. क. ख. वंद; ७. ख. ‘गयई.
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