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२१६४ ]
नवमभवि वसुदेववृत्तंतु
[२१६१]
अह ललंतउ तीइ सह सुइरु अइवाहइ वासरई अवर-समइ रयणिहिं हरेविणु । परिखित्तु अगाह-जलि सुर-नईए गयणिण निएविणु ॥ विहिहि निओएण उ पडिउ खंध-देसि खयरस्सु । विज्ज-सिद्धि-कइ तहिं गयहं चंडवेग-नामस्सु ॥
[२१६२]
तयणु तुट्टिण तेण खयरेण संलत्तउं - सप्पुरिस सिद्ध विज्ज मह तुह पहाविण । इय मग्गसु दुल्लहु वि जेण देमि तुह अइर-कालिण ॥ ता वसुदेविण तसु सविहि नहयल-गामिणि विज्ज । गहिवि निवेइय-विहिहिं लहु साहिय कय-वहु-कज्ज ॥
[२१६३]
एत्थ-अंतरि दिव्व-आहरणदेवंगिय-वत्थ-वर- रूव-पढम-जोव्वणिहिं चंगिय । ससि-विमल-कला-निलय पयडिहूय तसु इग नयंगिय ॥ तीइ हरिवि जायव-तिलउ सिरि-वेयड्ढ-नगम्मि । अहरिय-अमरावइ-विहवि अमियधार-नयरम्मि ॥
[२१६४]
नीउ अह तसु करिवि पडिवत्ति सिरि-दहिमुह-नामगिण नहयरेण स जि नियय-भइणिय । संखेविण दिन्न अह सउरिणा वि सा तरुणि परिणिय ।। पत्तावसरिण पुणु पुरउ तमु जंपिउ खयरेण । जह विन्नती सुणसु मह पसिउण एग-मणेण ॥
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