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२००१ ]
नवमभवि हरिवंसवुत्तंतु
[१९९८] वज्ज-पंजरि खिवइ घटुंतु पुचिल्लई मम्म-पय अह निएवि संसार-विलसिउ । सिरि-उग्गसेणह निवह जेट्ट-पुत्तु गुरु-गुणिहिं भूसिउ ॥ आगंतूण तहा-विहहं गुरुहुं चलण-मूलम्मि । अयमुत्तउ चारित्तु पडिवज्जइ. पवर-दिणम्मि ॥
। [१९९९]
अह नियल्लय-गुणिहिं गारविउ जरसंधिण वाइयउ तण-समाणु भुवणं पि मन्नइ । तत्तो वि हु लहुयतरु निवइ-निवहु माणिणवगन्नइ ॥ ताजीवजसहं कामिणिहिं सह वर-विसय-सुहाई। उवभुजंतउ कंस-निवु अइवाहइ दियहाई ॥
[२०००] ___ तह सुभद्दय-वणिउ स-पिओ वि आणाविवि इहु जणउ एह जणणि इय संपहारिवि । सम्माणइ आयरिण निवइ-देवि-ठाणेसु ठाविवि ॥ वसुदेवो वि-हु निय-जणिहिं सह सोरिय-पुरि गंतु । वहु-विणोय-कीला-रसिण परिचिट्ठइ कीलंतु ॥
अवि य
[२००१] कसिण-कुंतलु वियड-भालयलु मिग-लोयणु ससि-वयणु लंव-बाहु सु-विसाल-उरयलु । गंभीर-नाहि-दहउ
हरि-किसोर-कडि कमल-करयलु ॥ दीसइ जहिं जहिं नयर-पहि कय-निरुवम-सिंगारु । तर्हि तहिं खोहइ तरुणि-मण सिरि-वसुदेव-कुमारु ॥
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