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३२५७]
बलभद्दवुतंतु [३२५४]
एत्थ-अंतरि नेमिनाहेण मुणि-जुयलउं पेसियउं मुसलि-सविहि संपत्त-अवसरु । साहुहिं वि धम्म-कह कहिय सिठ्ठ कम्मारि-वइयरु ॥ निदिय जणणी-जणय-मुहि- सयण-विहव-आवंध । सलहिय असम-सुहावहय सिव-कामिणि-संबंध ॥
[३२५५]
तयणु मुसलिण चरण-परिणामपसरंत-महोदइण दुर-चइय-निय-मोह-ललिइण । भव-भाव-विरत्तइण निसिय-सिद्धि-संबंध-हियइण ॥ साहुहुं तहं पायहं पुरउ पडिवनउं चारित्तु । तयणतरु वलहद्द-मुणि कुंदिदुज्जल-चित्तु ॥
[३२५६]
विहिय-कोसलु दुविह-सिक्खाए संपाविय-कित्ति-भरु साहु-धम्मि दस-भेय-भिन्नि वि । चउ-जामिहि पत्त-जसु गय-ममत्तु निययम्मि अंगि वि ॥ मास-क्खमणह पारणइ पविसिरु पुरि एगम्मि । खुहिउ नियइ नारी-नियरु सरवर-कूव-तडम्मि ॥
[३२५७]
अह धिसि घिसि कम्म-परिणामु हा मोहह विलसियई हइउ हइउ विसयहं विवागु वि। जं जायहुं मोहयरु हउं वि विविह-तव-सुसिय-अंगु वि ॥ अहव किमन्निण जहिं हवइ रमणिहिं संचारो वि । तहिं न कुणहुं पारण-कइ वि पविसण-वावारो वि ॥ ३२५६. ९. क. ख. सरघर',
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