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[२०४४
नेमिनाहचरिउ
[२०४४] अह दुवेहिं वि तेहिं जणवाउ सच्चाविउ जं भणइ लोउ- एत्थ लोहिठ्ठ झुट्टिण । भामिज्जइ इय तवसि विहव-लुद्ध-वणिएण धट्ठिण ॥ पारद्धउ सेवेउ अह दो वि ति सिहरि-विसेसि । गंतु हवेउण एगयर- विवरह उवरि-पएसि ॥
[२०४५] भणइ तावमु-वच्छ पविसेउ रस-कूवि एयम्मि तुहुँ भरिवि रसह आणेसु तुंवउ । तयणतरु अ-क्खुहिउ चारुदत्तु इच्छिरु मुवन्नउं ॥ पिच्छंतउ भोसण-सयई गच्छंतउ अ-खलंतु । रस-कूविय-उवरि-ट्ठियहं गिरि-मेहलहं पहुत्तु ॥
[२०४६] अह निवारिउ नरिण एगेण तहिं पुव्व-पविटइण जह-म भद तुहुं एज्ज अग्गहु । इह हउं वि कवालिइण इमिण खिविउ धणि कय-असम्गहु ॥ खज्जतउ एइण रसिण कडियडु जाव विलीणु । चिट्ठहुं कंठ-पइ-हय- जीवियव्वु अइ-दीणु ॥
[२०४७] किंतु दवरिण गाहु वंधेवि रस-तुंवउं मह समुहु खिवसु जेण अप्पेमि भरिउण । इयरो वि तह त्ति तसु वयणु सयल अ-वियप्पु करिउण ॥ तावस-खिवियहं दवरियहं अवलंविवि जा पत्तु । रस-कूविय-तडि ता मुणिय- कावालिय-वुत्तंतु ॥
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