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नवमभवि पज्जुन्नचरिउ [२६७६] अह चरम-सरीरो सो सयलाउ कलाउ गिहिही अइरा ।
पिउ-जणणी वि मिलिही सोलस-वरिसाण अवसाणे ॥
[२६७७]
इय जिणिदह सविहि मुणिऊण नीसेसु वि तहं चरिउ गंतु गिरिहिं वेयइढि नारउ । अवलोइवि संवरह भवणि ललिरु पज्जुन्नु दारउ ॥ गुरु-हरिसिण गंतूण लहु घरि रुप्पिणि-कण्हाण । जिण-भासिउ सयलु वि कहइ सायरु पुच्छंताण ॥
[२६७८]
कमिण निय-तणु-कंति-पब्भारलायणिहिं विजिय-जय- तरुण-रूवु पज्जुन्न-कुमरु वि । संपत्तउ सयलहं वि कलहं पारि अणहुंत-खेउ वि ॥ विहिहि वसेण य कुसुमसर- विहुर-कणयमालाए । आणेविणु पज्जुन्नु रहि भणिउ खलिर-चायाए ॥
[२६७९] __ भणसि तं महु समुहु जणणि त्ति नउ तं सि महंगरुहु · न-वि य तुज्झ हउं जणणि सुंदर । नहि महुरउं कुणइ मुहु पुणु वि पुणु वि भणिया वि सक्कर ॥ इय तुहुं सुहय सरीरु मह मयणानल-संतत्तु ।। निय-तणु-संग-सुहा-रसिण सिंचसु अज्ज निरुत्तु ॥
२६८०] तयणु चमक्किय-हियओ पज्जुन्नो चिंतए - अहह किह णु ।
नत्थि पियं अ-पियं वा महिलाणं मयण-विहुराण ॥
[२६८१] इत्थी कंथारि-समा नीएहव उत्तिमे वि लग्गेइ ।
तो जुत्तीए अप्पा छोडेयव्वो त्ति चिंतेउं ॥ २६७६. १ क. सयलाओ कलाओ.
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