________________
६००
[ २६७०
नेमिनाहचरिउ [२६७०]
भमिवि चउ-गइ-भव-अरण्णम्मि सहिऊण अणेग-दुह सुकय-वसिण केण-वि सुरत्तिण । संजाउ विक्खाउ पुणु धूमकेउ इय पयड-नामिण ॥ तेण विनिय-नाणह वसिण सच्चविउ य निय-सत्तु । ता अवहरिउ सिसुत्तणि वि सो रुप्पिणि-हरि-पुत्तु ॥
[२६७१] अप्फालेमि सिलाए किमु किमु वंधेमि विडवि-साहाए ।
अहवा सयं-पि मरिहीइ सो विमुक्को सिहरि-सिहरे ॥ [२६७२] इय चिंतिरो सिसु ति य इयर-पयारेहिं निहणिउमसत्तो ।
वेयड्ढ-गिरि-सिलाए एगाए गंतु तं मुयइ ॥ [२६७३] अह एसो पंचत्तं पत्तो च्चिय काग-विग-वगेहिं पि ।
इय परिभाविय तियसाहमो गओ सो जहा-ठाणं ॥
[२६७४] ' एत्थ-अंतरि सिसुहु सुह-वसिण गयणयलिण आगयउ तम्मि ठाणि खयरिंदु संवरु । ता हरिसिण वालयह उवरि खिविवि नियइल्लु अंवरु ॥ संगहिउण निय-करयलिहि तणु-तेइण दिप्पंतु । कणयमाल-नामह पियह तिण रहि वियरिउ पुत्त ॥
[२६७५]
भणिउ पुणु जण-मज्झयारम्मि जह - छन्न-गब्भह पियह कणयमाल-नामियह दारउ । संजायउ सयल-मुहि- सयण-वग्ग-कल्लाण-कारउ ॥ पत्तावसरु पयच्छियउं पुणु तसु तणयह नामु । पिउ-जणणीहिं महा-महिण पज्जुन्नु त्ति ललामु । २६७२. १. क, वंधेवि. स. वंधमि.
सयणच
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org