________________
६०७
२७१६ ]
नवमभवि पज्जुन्नचरिउ
[२७१२]
तयणु पसरिय-गरुय-आणंदु जल-आविल-लोयणिण हरि कुमरु धरिऊण अंसिहि । निय-करयल-पल्लविहिं उद्ध विहिउ अह अ-सम-हरिसिहि ॥ समुहमुवेंतिहि वहु-निविहि वारवईए पविट्छ । सो पज्जुन्न-कुमार-वरु माणिय-सयल-विसिट्ठ ॥
तओ य[२७१३] मल्हंत-विलासिणि-सोहणयं नच्चंत-स-खुज्जय-वामणयं ।
दिज्जत-पत्त-फल-चंदणयं इय विहिउ हरिण वद्धावणयं ॥
[२७१४] नयरी-जणो य सयलो आसीसा-दाण-तप्परो जाओ।
पज्जुन्नकुमर-मिलणे मोत्तूणं सच्चमेगंति ॥
[२७१५] जाया य सच्चहामा हसणिज्जा सयण-परियणाणं पि
अब्भवसिएण तेणं वेसेण य तारिसेणं ति ॥
[२७१६]
अवर-अवसरि पुण-वि आगंतु सो नारउ केसवह कहइ - अत्थि वेयड्ढ-सिहरिहिं । निय सोहा-उवहसिय- अमरपुरिहिं सिरि-जंवुनयरिहिं ॥ सिरि-जंवव-नामिण पयडु विज्जाहर-चक्किदु । तसु सिवचंदा-नाम पिय जिइ जिउ वयणिण चंदु ॥ २७१४. २. क. मिहणे changed to मिलणे.
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org