________________
४६९
२०६७ ]
नवमभवि वसुदेववुर्ततु
[२०६४] उचिय-आसणि ठाउ स-वियक्कु जंपेइ य - मुणि-वसह कहसु कत्थ दिट्ठो सि तुहुँ मई । ता चारण-मुणि भणइ भद्द चंप-नयरीए जो तई॥ कंठागय-जीविउ खयरु अमियगई-अभिहाणु । जीवाविउ सो तइयहं वि रिउ-उद्धरण-पहाणु ॥
[२०६५] दप्पु दलिउण नियय-सत्तुस्सु परिवेप्पिणु निय-दइय गंतु झत्ति वेयड्ढ-सिहरिहि । उवभुंजिवि विसय-सुहु करिवि हरिस-पब्भारु स-सुहिहि ॥ नियय-तणुब्भवु सीहजसु संठविऊण य रज्जि । अवरु वराहस्सीहु पुणु विणि वेसिवि जुव-रज्जि ॥
[२०६६]
गहिय-जिणवर-चरिय-चारित्तु परिसीलिय-विविह-तवु कणयकुंभ-मुणिवरह सविहिहिं । विहरंतु सु अमियगइ कुंभकंठ-दीवम्मि सिहरिहिं ॥ कक्कोडय-नामम्मि इह एहु सु हउँ चिट्ठामि । एत्थंतरि निव-जुवनिवइ दो-वि ति नहयल-गामि ॥
[२०६७]
पउर-परियण तत्थ संपत्त वंदंति मुणिंद-पय गरुय-भत्ति-रोमंच-अंचिय । गंधव्वसेणा वि लहु- भइणि तेसि गुरु-मुहिहि संचिय ॥ निय-जणयह चारण-मुणिहि अमियगइहि तसु पासि । आयन्नइ वर-धम्मकह भुवणाभोग-पयासि ॥ २०६४. ८. क. तइंयहं. २०६६. ५. क. ख. समुहिहिं.
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org