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२११६ ]
नवमभवि वसुदेववुत्तंतु
[२११३]
जन्न-कज्जिण जीव पसु-पमुह पव्वयगिण आणविय अवहरेउ जन्नाई भंजइ । वारण य पव्धयग- पावु जिणिवि धम्मियणु रंजइ ॥ इहु मुणिउण सुरवइ-अहमु तमु विज्जह अहलत्थु । ठाविवि रिसहेसर-पडिम जन्नि हणइ जिय-सत्थु ॥
[२११४]
जन्नि निहणिय जिय वि पयडेइ गयणम्मि विमाण-गय ता भणइ नीसेसु लोगु वि । जह - जन्नि निसुंभियउ जाइ जीयु सग्गम्मि सयलु वि ॥ तयणु विसेसिण जणु कुणइ पसु-वहाइ-जन्नाई । ता जा सयर-नराहिवइ सुलस वि तहिं हुणियाई ॥
[२११५]
इय अणारिय-वेयहं पवित्ति पव्वयगिण किय पढम तयणु तेण महुपिंग-तियसिण । ता पाव-मलीमसिण पिप्पलाय-चालय-तवस्सिण ॥ तइयहं नारय-महरिसिण परिणिय खयरहं धूय । संपइ पुणु वंसम्मि तह इह सोम-स्सिरि हुय ॥
[२११६]
तयणु दु-विह वि वेय अइरेण वसुदेविण पढिय अह जिणिवि सोमसिरि कमल-वयणिय । अच्चंत- महूसविण दलिवि दप्पु इयरेसि परिणिय ॥ चिट्ठइ तीए सह सुइरु विसय-सुहई सेवंतु । अवरम्मि उ अवसरि गयउ पुर-काणणि कीलंतु ॥ २११५. ९. क. सामस्सिरि.
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