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________________ ६९६ [३१३७] गंतु कण्हह पुरउ रुयमाण --- Paras जहा • जणय हउं हवेसु सामिणि न दासिय । ता कहिण नियय-घरि घरिय विविहलंकरण -भूसिय ॥ इत्तो उण सिरि-मि-जिणु धरणीयलि विहरंतु । रेवय- गिरि- उज्जाण-वणि कम जोगिण संपत्तु ॥ सा वाल आणीय अह भव-भाव - विरत हरिअणुजाण मई जणय जिह अप्पाण साहउं हउं वि ― नेमिनाrafts [३१३८] तयणु कण्हण सामि- सविहम्मि निक्aमण - महा-महिम जह वहु-निव सचिव सुयअवरम्मि उ अवसर जिगह जह पहु संपइ उग्गयरु Jain Education International 2010_05 [३१३९] ता विसेसिण फुरिय-संतोसु अइदुक्करु तवु चरइ ता वियसिय-मुह - कमलु केण निमित्तिण केरि व ढंढण - कुमरु सुपरमु मुणि ३१३९ १.क. पुरिय. सुणिवि पहुहु सद्धम्म - देसण | पुरउ भणइ चरणाणुरागिण || संजम भारु धरेवि । जय-पहु- सेव करेवि ॥ कुण ती हरि तह कह-चिवि । धूय चरणु गेहति अवरिवि ॥ सविहि कण्हु पुच्छे | को तव चरणु चरेs || [३१४०] तयणु जिणवरु भणइ - तुह पुत्तु एहि ताव ढंढण-कुमारु जि । भइ कण्हु - पहु कहसु एहु जि ॥ तबु उग्गयरु करेइ । अह जिण वरु जंपेइ ॥ For Private & Personal Use Only [ ३१३७ www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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