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गंतु कण्हह पुरउ रुयमाण
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Paras जहा • जणय हउं हवेसु सामिणि न दासिय । ता कहिण नियय-घरि घरिय विविहलंकरण -भूसिय ॥ इत्तो उण सिरि-मि-जिणु धरणीयलि विहरंतु । रेवय- गिरि- उज्जाण-वणि कम जोगिण संपत्तु ॥
सा वाल आणीय अह भव-भाव - विरत हरिअणुजाण मई जणय जिह अप्पाण साहउं हउं वि
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नेमिनाrafts
[३१३८]
तयणु कण्हण सामि- सविहम्मि
निक्aमण - महा-महिम जह वहु-निव सचिव सुयअवरम्मि उ अवसर जिगह जह पहु संपइ उग्गयरु
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[३१३९]
ता विसेसिण फुरिय-संतोसु
अइदुक्करु तवु चरइ ता वियसिय-मुह - कमलु केण निमित्तिण केरि व ढंढण - कुमरु सुपरमु मुणि
३१३९ १.क. पुरिय.
सुणिवि पहुहु सद्धम्म - देसण | पुरउ भणइ चरणाणुरागिण || संजम भारु धरेवि । जय-पहु- सेव करेवि ॥
कुण ती हरि तह कह-चिवि । धूय चरणु गेहति अवरिवि ॥ सविहि कण्हु पुच्छे | को तव चरणु चरेs ||
[३१४०]
तयणु जिणवरु भणइ - तुह पुत्तु
एहि ताव ढंढण-कुमारु जि । भइ कण्हु - पहु कहसु एहु जि ॥ तबु उग्गयरु करेइ । अह जिण वरु जंपेइ ॥
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