________________
३१३६ ]
नेमियुतंतु [३१३१] दट्टण वीरयं पुण भणइ - कहं हंत दुव्वलो सि तुमं ।
पडिहार-दारओ अह सिर-कय-कर-संपुडो भणइ ॥
[३१३२]
सामि अणुदिणु एहु आगंतु वियरेविणु गुंहलिय पंच-वन-कुसुमोवयारु वि । घर-दार-पएसि खणु एगु ठाउ पहु-मुहु अ-पेक्खिवि ॥ चिहइ गंतु नियम्मि घरि दिणि भोयणु अ-कुणंतु । संपइ चउमासहं स-पहु दिउ इमिण निरुत्तु ॥
__ [३१३३]
इय स-मंदिरि गंतु इच्छाए मुंजिस्सइ एहु जइ एण्हि चेव ता कण्हु तुहउ । अणुमन्नइ तयणु इयरो वि जाइ निय-धरि पहिढउ ॥ ता परिणयणावसरि हरि- सविहि धृय इग पत्त । अह तुहुँ दासि व सामिणि व हवसि हरिण इय वुत्त ॥
[३१३४]]
जणणि-सिक्खहं भणइ सा वाल हउं दासि हवेसु अह मुणिय-पुव्व-वइयरिण कण्हिण । अत्थाण-मंडवि नियय- सहहं भणिउ अविहिय-वियारिण ॥ निवसंतउ वयरीण वणि जिण रत्त-प्फडु नागु । निहउ पुहइ-सस्थिण सु इहु वीरउ खत्तिय-चंगु ॥
[३१३५] इय सम्व-मुसा-वयणेहिं संविहाणय-सएहि स-सहाए ।
खत्तिय-तिलओ एसो ति साहिउं तस्स सा दिण्णा ॥
[३१३६] इयरेण वि पढमं कय-स-सत्ति-अणुरुव-गठरव-सएण ।
__हरि-वयणेण उ तह कहमवि सा उन्वेड्या जेण ॥
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org