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नवमभवि वसुदेववृत्तंतु
[२०५६] मंस-भंतिण लुद्ध-हियएहिं भारुड-पक्खिहिं गहिय मुहिण जाहुं सोवन्न-भूमिहि । अह चारुदत्तिण भणिउ नणु सु-पुरिस नेरिसिहि कम्मिहि ॥ छिप्पहिं जं छगलहं वसिण अम्हि इहागय सिग्घु । ता किह कीरइ नरय-फल एयहं एरिसु विग्घु ॥
[२०५७] अह कुवेविणु रुद्ददत्तेण संलत्तउं- अरिरि तुहं धम्मिओ सि वीहसि य नरयह । इय चिट्ठसु इह वि ठिउ न-उग सामि एयाहं छगलहं ॥ हउं पुणु करिवि जहारुइउ गच्छिसु कणय-दीवि । इय जंतु वि परिमुयइ छुरिय-घाउ अज-गीवि ॥
[२०५८] ता खणद्धिण करुणु विरसंतु पंचत्तह पत्तु अजु एगु तयणु धाइउ सु वीयह । एत्थंतरि वज्जरिउ समुहु चारुदत्तिण स-छगलह ॥ भद्द न सक्कउँ ताव हर्ष संपइ तई रक्खेउ । तुहं पुणु डरियह भुवणह वि रक्खण-खमु जिणु देउ ।
[२०५९] दस-पयारिण समण-धम्मेण सु-पवित्तु सु-साहु-गुरु जिय-अजीव-पमुह नव-तत्तई । परमेहि वि पंच-विह सुगइ-सुहय जिण-इद-वुत्तइं॥ पडिवज्जसु तह पुव्व-कय- दुकय-सयई गरिहेसु । भावण एगग्गिण नियय- मण-पसरिण भावेसु ॥ २०५८. १. क. विलसंतु. ७. क. तई.
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