________________
५७९
२५६६ ]
नवमभवि जायवजरसंधविरोड
[२५६३]
कालु पुणु मइं किय पइन्न त्ति जलणाउ वि कड्ढिउण नेसु सत्तु पिउ-सविह-धरणिहिं । इय जंपिरु वारिउ वि परियणेण वहु-विहिहि वयणिहि ॥ हरि-रामह केरिय चियहं पडिउ तलप्फ दलेवि । पहु पहु किं किं एहु इय भणिर वि अम्हि मुएवि ॥
[२५६४] __ता किमेयहं चियहं अम्हे वि संतेउर स-परियण निवडिऊण पंचत्तु पाम्बहुं । अहवा किं नियय-पहुहु पुरउ गंतु वइयरु निवेयहुँ ॥ इय चिंतंतहं सयलहं वि वियलिय-मइ-विहवाहं । अत्थमियउ दिणयरु हुयउ उदउ सयल-ताराहं ॥
[२५६५]
तयणु तत्थ वि दिन्न-आवास अइवाहिय निसि-समय जाव अम्हि वाहुल्ल-लोयण । अवलीयहं दिसि-मुहइं पत्त-उदय-पाविय-विरोयण ॥ तान सु गिरि न ति चिह-निवह न ति जायव-आवास । अवलोइय अम्हेहिं इय हुय अच्चंत-निरास ॥
[२५६६]
कह-कह-चि वि पत्त पहु-पुरउ जह-मुणियउ वइयरु वि पहुहु सविहि विन्नत्तु सयलु वि । अह जायव-तिलय-हरि- मुसलि-मरण-सवणेण सुहिउ वि ॥ निय-कुल-मंदिर-जस-कलस- काल-मरण-कय-दुक्खु । सुद्ध-धरायलि निवडिउण हुयउ झडत्ति अ-लक्खु* ॥ * क. ग्रंथागं ६५००. ख. ग्रं० ६५००.
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org