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२९१४]
कण्हचरिउ [२९१०] इय साहिय-भरहद्धो कण्हो छम्मास-मित्त-कालेण । पुवज्जिय-सुकरहिं जय-प्पयावेहि य समिद्धो ॥
[२९११]
तयणु केसवु फुरिय-माहप्पु ति-क्खंडहं वसुमइहिं नियय-आण स-हरिसु पयासिवि । रण-विजिय-अणेग-निव उचिय-उचिय-ठाणिहि निवेसिवि ॥ अज्जिवि अइरिण पउर-सिरि साहिवि वमुह ति-खंड । अद्ध-चक्कि हुउ महुमहणु तोलिवि निय-भुय-दंड ॥
[२९१२]
अह अणग्घिण विहव-जोगेण नीसेस-जायव-कुमर स-बल गंतु वारवइ-नयरिहि । निय-जोव्वण-रूव-सिरि- विजिय-महिम रइ-रंभ-लच्छिहि ॥ सह ससि-वयणिहि कामिणिहि विसय-सुहई सेवंत । चिट्ठर्हि दोगुंदुग-सुर व गउ वि कालु अ-मुणंत ॥
[२९१३]
तह ति विलसिर-चहल-लायन्न संपुन्न-जोव्वण-भरिण फुरिय गरुय-पडिवक्ख-खंडण । संतोसिय-सुहि-सयण दढ-पइन्न दुन्नय-विहंडण ॥ पोढ-नियंविणि-माण-गुरु- तरुवर-दलण-कुढार । विलसहिं महिहिं महा-महिण मुररिउ-नेमिकुमार ॥
[२९१४]
पत्त-अवसरु समुदविजएण नीसेस-जायव-जुइण लग्ग-दियहि गरुयर-समिद्धिण । कुठुगिण वि साहियइ सुह-मुहुत्ति ससि-सुद्ध-बुद्धिण ॥ ठाविउ जायव-तिलउ हरि अद्ध-भरह-रज्जम्मि । वलएवो उ महा-महिण ठवियउ जुव-रज्जम्मि ॥ २९१२.७. क. सेवंतु. २९१४. २. क. जाइव.
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