________________
नेमिनाहचरित
[ २७७३
[२७७३]
तस्सु वंधव-जणु वि निम्विन्नु पयईउ विरत्त-मण सचिव-निवहं न करेइ आयरु । जायंति उप्पाय-सय सउण-सिविण-विसउ वि न सुंदरु॥ निवइ वि अणुवित्तीए तसु जइ परिसेव कुणंति । भत्ति-भएहिं उ तुह जि पर अणुरत्ता चिट्ठति ॥
[२७७४]
एहु ठाणु वि तुम्ह निय-देससीमाए कण्ह इय इह जि ठिइहि जिप्पइ अ-संसउ । इय निसुणिवि केसविण नियय-वलह चउ-दिसि कराविउ ॥ जंत-निवेस-महा-फरिह- पमुहु अणेगु पयत्तु । समुदविजय-वसुहाहिवह वयणु गहेवि सु-जुत्तु ॥
[२७७५]
तयणु अच्चुय-नाम-विक्खाउ दंडाहिवु स-भुय-वल- दलिय-सयल-रिउ-कुल-मडप्फरु । निय-कडय-निवेस-चउ- दिसिहि मुक्कु बहु-सेन्न-वित्थरु ॥ एत्थंतरि जायवहं वलु तहिं आगयउं सुणेउ । तम्मज्झम्मि उ हरि-वल वि परिचिट्ठति मुणेउ ॥
२७७६]
कोव-कंपिर-अहरु जरसंधु जंपेइ निय-परियणह पुरउ - अह[ह] पारद्ध-निहणिउ । वारवइहिं गंतु जि ति इह वि पत्त चिटॅति मह रिउ ।' जं तइयह मह नंदणह जामाउयह वि तेहि । निहणु कुणंतिहि पाव-तरु रोविउ तमु स-करेहि ॥ २७७३. २. क. पयईओ. २७७४. ३. क. असंसओ. २७७६. १. क. अहर; ३.निहिणिउ.
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org