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________________ २७८२ ] समुदविजय पमुहं विनिवहिं । वसुदेव-नंदाइयहं कमन्नह मह वि अविणीय गोव ते धरहिं सविहिहिं || अहवा जइ गोवाल मई न मुणहिं ता म मुणंतु । सो उण सम्म कह - णु जायव - जणु आवंतु ॥ अवि य नवमभवि कण्हजरसंधविग्गहु - [२७७७] फलई वियरिसु तेसि गोवाहं जायंति पिवीलियहं अह हंसग - नागिण जह जायव - निवहिं वि वलु जेसि सुरासुर - नायग वि [२७७८] अव गुरुहुं वि गलिहिं बुद्धीउ पक्ख अंति हय - विहि- निओइण । विउल-मइण संलत्तु * सचिविण ॥ तुच्छउं मुणिसु म देव । कुणईं निरंतरु सेव ॥ [२७७९] किर इयर - नरेहिंतो वलं वलाण वि अ-परिमियं भणियं । जं पुण कण्हस्स वलं तं मह - रिसिणो कहंतेवं ॥ [२७८०] सोलस-राय-सहस्सा सव्व-वलेणं पि संकल- निवद्धं । अछति वसुदेवं अगड - तडम्मि ठियं संतं ॥ Jain Education International 2010_05 [ २७८१] तूण संकलं सो वामगहत्थेण अंछमाणेण । भजिज्ज व लुपिज्ज व महुमहणं ते न चायंति ॥ [२७८२] कोडि-सिलं एक्को वि-हु करेण गहिऊण उक्खिव बिहू | दु-गुणं तु वलं चक्किस्स केसवाओ विणिद्दि ॥ ६२३ २७७७. १. क. वियरसु; ७. क. नाम; क. मुणंत. * The portion from 'लतु ( 2778 5.) to वलं (2779 1 ) is dropped in ख. २७७८. १. क. बुद्धीओ. २७८०, २. क. तमिं. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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