________________
२४६७]
नवमभवि कण्हस्स महुरागमणु
[२४६४]
किं न वेगिण कुणसि जं भणिउ किं न नियसि ऊसुयउ एहु लोउ चलिओ त्थि महुरहं । अह अ-मुणिरु तारिसउ हेउ तेसि तारिसहं वयणहं ॥ जणणि-पराहव-दुह-हयउ मउलिय-मुह-कंदुटु । भाव-सिणेहिण वंधविण किं-चि वि दलिय-मर१ ॥
[२४६५]
हुयउ केसवु तह-वि परिविहियनिय-उचिय-असेस-विहि किय-सिणाण-भोयण-विलेवणु । वलभदिण सह चलिउ महुर-समुहु रहवरि चडेविण ॥ पत्तावसरिण अद्ध-पहि . पुणु मुसलिण सो वुत्तु । जह - किं दीससि कण्ह तुहुँ गरुय-दुहिहिं संजुत्तु ॥
[२४६६]
तयणु दुम्मणु मुक्क-नीसासु परिमउलिय-मुह-कमलु भणइ कण्हु - किं भाय जंपहुं । निय-सवणिहिं दुव्वयण जणणि-विसइ एरिस निमुणहुँ ॥ स-गुण-सिरोमणि नय-निउणु विउसु विणीय-पहाणु । तुहुं वि पयंपहि एम्ब इय मह कि न खडिउ माणु ॥
[२४६७] ___ता हसेविणु मुसलि जंपेइ नणु वच्छ जसोय तुह जणणि नेय न य जणउ नंदु वि । तुहुं सउरि-देवइहिं सुउ इह उ मुक्कु चिट्ठसि उविंदु वि ॥ कंस-निवाहम-भएण अह कह कह कहि कहि भाय । इय पुच्छंतइ कहि वलु कहइ स-वइयर-जाय ॥ २४६५. ८. क. तुहु. २४६७. ९. क. वइर.
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org