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________________ [२०९३ ४७६ नेमिनाहचरिउ [२०९३] अह पहाविय तस्सु गहणत्थु कोऊहल-हरिय-मण वाल जाव ता पुरिस-रूविण । अइ-करुणउं पलविर वि नीय कह-वि तेणावि हरिउण ॥ तीए विओइ अरन्न समु भुवणं पि-हु मन्तु । नर-विज्जाहर-सुर-तरुणि- मण-वणराइ वसंतु ॥ [२०९४] कयलि-हरयह नीहरेऊण तक्खणिण वि सउरि-कुल- गयण-चंदु अच्चंत-दुक्खिउ । तं तरुणी-रयणु निरु नियइ धरहं इयरिहिं अ-लक्खिउ ॥ कम-जोगेण य एगयरि पत्तउ पुरि जा ताव । वेय पढंत सुणइ दिय जि जलहर-गहिरालाव ॥ [२०९५] तयणु पुच्छिउ तेण दिउ एगु किं एत्थ दीसहिं दिय जि निच्चु वेय-उग्गार-पच्चल । अह विप्पिण भणिउ - इह अस्थि कलहं कोसल्लि निच्चल ॥ धुय सुरदेवह दिय-वरह वेय-कलाहं निहाण । खत्तिणि-पिय-तणु-संभविय सोमस्सिरि-अभिहाण ॥ [२०९६] पत्त-जोव्वण भणइ सा वाल - परिणिस्सइ सु ज्जि पर जो जिणेइ मई वेय-विज्जहं । इय निसुणिवि विप्प-जणु लटु तमु जि परिणयण-कज्जहं ॥ एम्व निरंतरु इह नयरि वेयब्भासु करेइ । वंमदत्त-विप्पह पुरउ पढिय परिक्ख वि देइ ॥ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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