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२६१३]
नवमभवि नेमिवुत्तंतु [२६१०]
तित्थ-सामिय हवहिं इयरे वि रूवेण अनन्न-सम भुवण-अहिय-सोहग्ग-सुंदर । भुवणोयर-वित्थरिय- छण-ससंक-सिय-कित्ति-मणहर ॥ किंतु जहा अज्ज-विजणइ जणह चमक्कउ नेमि । तह विप्फारिय-लोयणु वि अन्नयरह न निएमि ॥
[२६११]
तयणु अणुकम-पत्त-तणु-वुइढि नीलुप्पल-ललिय-पहु सं ख-अंकु सिरि-नेमि-सामिउ । उद्ध-द्विउ निवसिउ वा गिह-गउ व्व पुर-पहि व गामिउ । अहवा जहिं जहिं ठिइहिं ठिउ तहि तहिं वहु-कामाहिं । चलिहि चलंतिहि लोयणिहि जोइज्जइ रामाहिं ॥
[२६१२]
कहहं चित्तिहिं लेप्प-कम्मेसु गीएहिं सो ज्जि पहु तत्थ तम्मि समयम्मि नज्जइ । लब्भंतिहि गयवरिहिं रासहेहिं नणु काई किज्जइ ॥ मय-भिभल तियसंगण वि सग्गि विसु जि झायंति । किन्नर-तरुणि वि सुर-गिरिहि नेमि-कुमरु गायंति ॥
[२६१३]
कह-वि न कुणहिं स-स-कम्माइं सुर-किन्नर-नर-तरुणि भुवण-नाह-गुण-गहण-तप्पर । सामी उण कामिणिहिं कह वि चयइ अणुराय-सुंदर ॥ नेमि-कुमारह सुणि वि ससि- निम्मलु कित्ति-कलावु । अवरु वि गुण-रयणज्जणइ जयइ समुज्जल-भावु ॥ २६१२. १. क. चित्तिहि; ४. क. गयवरिहि.
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