________________
[१९५१
नेमिनाहचरिउ [१९५१]
काल-जोगिण महुर-नयरीए निक्खंति सुवीर-निवि भोजवण्हि जायउ नरेसरु । सउरिम्मि य गहिय-वइ सिवह पत्ति धरणियल-सुहयरु ॥ सिरि सोरिय-पुरि नयरि तहिं ससहर-विमल-सहावु । अंधगवहि-नराहिवइ हुयउ उदग्ग-पयावु ॥
[१९५२]
महुर-नयरिहिं भोजवहिस्सु नर-नाहह अंग-रुहु उग्गसेण-नामिण पसिद्धउ । संजायउ निवइ जय- अहिय-महिमु गुण-मणि-समिद्धउ ॥ अंधगवण्हि-नराहिवइ- सिरि-समुद्द-देवीण । जाय तणूह एहि दस गुरुयण-चलण-निलीण ॥
[१९५३] पढमो समुद्दविजओ अक्खोभो तह-य तयणु तिमिउ ति । अह सागरो चउत्थो हिमवतो पंचमो होइ ॥
। [१९५४] अयलो धरणो तह पूरणो ति नवमो य होइ अभिचंदो । दसमो उण वसुदेवो कुंती मद्दी य दो धूया ॥
. [१९५५)
पंडु-निवइण कुंति परिणीया वीवाहिय मदिय वि चेदि-नाह-दमघोस-निवइण । अह अंधगवण्हि-निवु नियय-रज्जु हत्थेण नियइण ॥ सिरि-समुहविजयह नियय- गुरु-तणयह वियरेइ । अप्पणु पुणु सुह-गुरुहु पय- सविहिहिं चरणु चरेइ ॥
१९५१.९. क. उदग्गु.
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org