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२८९३ ]
कण्हजरसंधविग्गहु [२८८९] एए खलु पडि-सत्तू कित्ती-पुरिसाण वासुदेवाण । सव्वे वि चक्क-जोही सव्वे वि हया स-चक्केहिं ॥
[२८९०]
इय सुणेविणु खुहिउ जरसंधु परितुट्ठउ सउरि-सुउ भणइ - अरिरि अप्पाणु मुणिउण । तुहूं अज्ज-वि अवसरसु मा मरेसु समरम्मि पडिउण ॥ अह मगहाहिवु सामरिसु भणइ - अरिरि गोवाल । मह सत्येण वि गव्वियउ जंपहि आलम्माल ॥
[२८९१]
किंतु नूण न हउं जरासंधु जइ चक्केण वि सहिउ मुग्गरेण तुह तणु न चूरउं । इय भणिरस्स वि रिउहु समुहु तेउ-पसरेण जलिरउं ।। फेरेउण धरणी-धरिण चक्करयणु परिमुक्कु । तं पि हु तसु सिरु छिंदिउण हरि-करि आविवि थक्कु ॥
[२८९२]
अह विसेसिण खयर-सुर-सिद्धगंधव-किन्नर-नियर हरिहि उवरि कुसुमेहिं वरिसहिं । वाएंति य दुंदुहिउ गहिर-सरिण जय-सदु घोसहिं ॥ मुणिउण मगहाहिवह वहु रोह-रुद्ध निव-विंदु । मुयइ नेमि करुणा-रसिण सिंचिय-मुह-अरविंदु* ॥
[२८९३]
__ अह ति नरवर नेमि-पय-पउम पणमिप्पिण भत्ति-भरु भणर्हि - नाह तुह जत्थ नयण वि । सु-पसन्नई वीसमहिं तत्थ होइ धुवु विजउ भुवणि वि ॥ जहिं पुणु सक्खं चिय तुहुँ जि साहज्जिण बट्टेसि । किं किं न हवइ वंछियउं इह-पर-जम्मि वि तेसि ॥ २८९० २. क. परितुट्ट. ९. क. जपहि, ख. जहि.
*२८९२, क. ख. ग्रंथाग्रं ॥७०००॥ २८९३. २. रत्तेभरु.
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