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२९३२ ]
कण्हचरिउ
[२९२९] इत्तो य -
गोसि पंडव दइय अ-नियंत अच्चताउलिय-मण धरणि-बलइ सव्वत्थ जोइ वि । परिसाहहिं हरि-पुरउ सो वि स-वलु दढयरु विसरिवि ॥ नणु भरहद्धि न अस्थि कु-वि माणवु वप्पिण जाउ । जो मई सहुँ खवलिवि हरिवि दोवइ कह-वि पलाउ ॥
[२९३०]
इय विचिंतिरु कण्हु चिठेइ जा ताव नहंगणिण तत्थ विप्पु नारउ पहुत्तउ । ता कण्हिण पुच्छियउ कहइ सयल वइयरु जहुत्तउ ॥ अह सुत्थिय-सुर सुमरियउ कण्हिण तत्थ पहुत्तु । तयणंतर तसु साहियउ सयल्लु पुव्व-वुत्तंतु ॥
[२९३१]
तयणु सुत्थिय-विहिय-साहज्जु खण-मेत्तिण छहिं रहिहिं पंडवेहि पंचहिं वि जुत्तउ । दो-लक्ख-जोयणु उयहि तरिवि अवरकंकहं पहुत्तउ ॥ पउमनाभ-निवइहि पुरउ दूयउ दारुग-नामु । पेसइ सो-वि हु गंतु तहिं भणइ - महाबल-धामु ॥
[२९३२]
जलहि तरिउण पत्तु इह कण्हु चिठेइ पुरीए वहि सहिउ पंच-पंडव-नरिंदिहिं । ता दोवइ तसु भइणि सुण्ह पंडु-अभिहाण-निवइहि ॥ भारिय पंचहं पंडवह निम्मल-सील-विसाल । सामिण भणिउ नरिंद तुहुँ अप्पहि कण्णह वाल ॥ २९२९. ४. क. पुरओ. ७. क. माणुवि, ख. ण्णाणवु.
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