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नेमिनाहचरिउ
। २६५८ [२६५८]
नणु महारिसि जइ वि वुत्तंतु इहु गरुयउ तह-वि तुहुँ सुणसु जेण साहेमि लेसिण । भवि पच्छिमि आसि जियसत्त-निवह दइया स-रूविण ॥ रुप्पिणि अवरम्मि उ दियहि कोऊहलिण पउत्त । हरिवि मऊरह किंटडउं सोलस धरइ मुहुत्त ॥
[२६५९]
तिण विवागिण हरिउ एयह वि सुय-रयणु मिलिस्सइ य सोलसण्ह वरिसाण अवहिहिं । सिमुणो वि-हु हरण-दुह- हेउ सुणसु साहेमि लेसिहिं ॥ उसह-पुरम्मि अहेसि मधु- निवइ दलिय-पडिवक्खु । तसु केटभ-अभिहाणु जुवराउ सुकय-कय-लक्खु ॥
[२६६०]
अवर-अवसरि विजय-जत्ताए गच्छंतिण महु-निविण पुर-विसेसि एगम्मि* दिट्ठिय । सिरि-विस्ससेणह निवइ- दइय ललिय-अंगिहिं विसिट्ठिय ॥ अंतेउरि हरिउण खिविय मयण-कुमुय-चंदाभ । चंदाभ त्ति पसिद्ध अह मधु-केटभ हुय-लाभ ॥
[२६६१]
ललिवि सयलहं धरहं कु-वि कालु समुवागउ उसहपुरि महु-निवोह गरुयाणुरागिण । चंदाभहं सह विसय- सुह-सयाई सेवइ पसंगिण ॥ इत्तो उण निय-पिय-विरहि विस्ससेण-नरनाहु । धाहावइ विहसइ रुयइ पसरिय-गुरु-आवाहु ॥ २६५८. ९. क धरहि. २६६०. ५. क. लअंगिहिं; क. विसट्ठिय, ख. सिसिट्रियं.
* As the writing on folio 249 B and 250 A is mostly blurred, the text of the portion from गम्मि दिट्ठिय (2660.2) to कल्लाणकारउ (2675.5) is mostly illegible in ms. क
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