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२६५७ ]
नवमभवि पज्जुम्नचरिउ
[२६५४] कालजोगिण जाउ सुय-रयणु
कय - उन्नह रुप्पिणिहि अवलोइय-तणय-मुहु जायव - नंदणु रुप्पिणिहि
ता अवहरिउ त सुय-रयणु किण-वि पयासिय रो ||
तयणु मुणिय-वृत्तंतु मुर-रिउ । गहिवि करिहिं आगंतु सतुरिउ ॥ अप्पर कय-संतोसु ।
[२६५५ ]
नयलि धरहं पायालि
तयणु अवलोइय-सुय-रयणु
अप्प - परिहिं नाणा - पयारिहि ।
नउ पांव तसु पगु वि ता गहीउ हरि गुरु-विसाइहिं ॥ रुपण पुणु तह कहमवि-हु विलवइ गलिय-विवेय । जह रोयावर पायव वि किं पुण जिय वहु-भेय ॥
[२६५६]
अवर वासरि भवणि रुप्पिणिहि
रिसि नारउ आगयउ ता करेवितसु भत्ति वहु-विह
भणइ
हरि रुप्पिणि-परिकलिउ भयवमम्हाण साहह ॥ केण हयासिण अवहरिउ मह पेक्खंतह पुत्त । अह मा तम्महु इहु सुयह सुद्धि कवि हुतु ॥
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[२६५७ ]
इय पवज्जिवि नहिण उप्परवि
अवलोइवि सयल घर सीमंधर- जिण पुरउ भइ - भदंत कहेसु मह भइ य जिणु दसण-पहहं दह-दिहि उज्जोयं ॥
२६५५. ३. क. परिहि. ८. क. तह. २६५७. ८. क. 'पहुह.
हरिहि पुत्तु अ-नियंतु नारउ । गंतु करिवि नवकारू सारउ ॥ केण हरि हरि - पुत्तु ।
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