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[३१८९]
पाव- तावसु इमु विपडि पिउहु
जं रोयइ तं कुणडु वारवइहिं गंतु दिण नेमि - जिणेसर - पय- पुरउ पडिवन्नउं चारितु । दीवायण - अहमाहमुवि
पुरि-वह-अविरय-चित्तु ॥
वारवदहणु
एम्ब कण्डु अणुसिटु मुसलिण । गमइ के वि ता जणिण पउरिण ||
[३१९० ]
मरिवि पत्त
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अग्ग- कुमरेसु
मुणिय - पुच्व-भव-भाषि वइयरु ।
नयर - जणहं संहरण - अवसरु ॥
ता निययन्नाण-वल
अलहंतउं धम्म-पर
अप्पु पयासिवि गउ पुरिहि अह वारस - वरिसाणि । अइवाहर कुव्वंतु पुर- लोउ धम्म-कम्माणि ॥
[३१९१] कण्ह-हलहर-कहिय-विहि-पुव्वु
तयiतरु अइगयउ इयं चिंतिरु पुण-वि तह अ-वियानंतर कित्तिय वि
अम्ह एहु उवसग्गु खेमिण । चेव विसय सेवइ पमाइण ॥ बुड्ढ दियह थक्कंत । अह उपाय सुरामिण तिण दंसिय पसरंत ॥
[३१९२]
लेप्पमइय विहसहिं पुत्तलय
उप्पाडिय-भमुह - जुय कंपति मंदिर - सिहर आरन्नय- सावय भमहिं
दियहि विगह- गणु पयडिहुर हुयउ कंपु धरणीए ॥
३१९०. ५. क. जणह.
नियहिं चित्त-आलिहिय देवय । तरुवरा वि दीसंति दीवय ॥ सयल - पहिहि नयरीए ।
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