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२८३५ ]
कण्हजरसंधविग्गहु
[२८३२]
किंतु संपइ होसु खणमेगमुववेत्तु कोयंडु करि मज्झ समुहु जह तुह खणद्धिण । जय-जय-रवु संहरहुं चिर-परूहु सह रज्ज-रिद्धिण ॥ अन्नह ढंकिवि कन्न तुहुँ नाससु तुरिउ हयास । किं न निरिक्खसि मंडिया तणा कयंतह पास ॥
[२८३३]
इय सुणेविणु निवइ जरसंधु रोसारुण-नयण-दलु गहिवि धणुहु साडोवु जंपइ । अरि वालय मरिसि तुहुँ मज्झ-समरि हुक्कंतु संपइ ॥ सुत्तउ सीहु म जग्गवहि करिहि म गेहहि सप्पु । सरणु न होसइ तिहुयणु वि हउं तुह भंजिसु दप्पु ॥
[२८३४]
एहु निमुणिवि कण्हु सामरिसु धणु-टंकारविण तह पंचयन्न-संखह निनाइण । विक्खोहइ सत्तु-वलु तह कहं-चेि जह दुसह-मुच्छिण ॥ विहलंधलु धरणिहिं पडिवि हुउ मुयणहं सोयव्यु । सिरि-जरसंधु नराहिवु वि न मुणइ जं कायव्वु ॥
[२८३५]
नेमि-कुमरु वि तिसु वि भुवणेसु दढ-सावाणुग्गहहं जो समत्थु तसु गणण केरिस । जरसंध-नराहिवह विसइ किंतु मन्नंतु एरिस ॥ पाव-पवित्ति महा-नरय- कारणु तह य हरीहिं । हम्म हिं पडिकण्ह त्ति परिचिंतिरु ठियउ तडीहिं ॥ २८३३. ७. क. गेण्हइ.
२८३४. १. क. कण्ह.
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