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________________ २६०४ ] नवमभवि वारवइनिम्माणु अवि य - [२५९७] रयण-निम्मिय-विविह-देवउलसिहर-ट्ठिय-कणयमय- कलस-किरण-पिंजर-दियंतर । पुर-उववण-पउमसर- गमिर-विहय-रव-भरिय-अंवर ॥ अहव किमन्निण भुवण-मण- हरण असेस हाण । वेसमणिण किय वारवइ अमरावइहि समाण ॥ [२५९८] अह सु केसव-विहिय-सक्कारु संपत्तउ सुर-भवणि पुरउ सक्क-तियसाहिरायह । तयणंतरु सुत्थिइण सुरिण हरिहि वलभद्द-भायह ॥ कोत्थुभ-रयणालंकरणु वियरिउ कय-सक्कारु । तह धरणियलह अब्भहिउ एहु वत्थु-पब्भारु ॥ [२५९९] सत्तिं कोमुइय-गयं नंदग-करवाल रयण-वणमालं । अक्खय-तूणा-जुयलं आसीविस-वाण-संजुत्तं ॥ [२६००] सारंग-चावमसमं गरुड-ज्झय-संजुयं रहं दिव्वं । अन्नाइं वि वहुयाई दिव्व-वत्थाई वि दिन्नाई ॥ [२६०१] रामस्स पुणु पयच्छइ तूणा-जुयलेण सह महा-चावं । मुसलं हलं गयं तह ताल-ज्झय-सहिय-रह-रयणं ॥ [२६०२] तो पुन्नभद्द-पमुहा जक्खा वेसमण-वयणओ तेसिं । दंसंति समुचियाइं गिहाई अहं तेसु निवसति ॥ [२६०३] अद्ध-चउत्थ-दिणाणि य जक्खो वरिसंति तीए नयरीए । आहरण-कणय रयणेहिं वत्थ-धण-धन्नमाईहिं ॥ [२६०४] संपुन्न-सयल-कोसो महिड्ढिओ होइ तो जणो सयलो । किं वहुणा सा नयरी जाया अमरावइ-पुरि व्य ॥ ७४ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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