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[१९३४
नेमिनाहचरिउ [१९३४]
*अवर-अवसरि नियय-धवलहर वायायण-संठिइण सविह-विहिय-वणमाल-देविण । अवलोइउ निविण पहि परिभमंतु सह डिंभ-सहसिण ॥ परिवियलिय-अंबर-जुयलु भसमुद्धलिय-गत्तु । सु जि वीरउ पुणु पुणु सुयणु वणमाल त्ति भणंतु ॥
[१९३५]
तयणु पसरिय-पच्छयावेण नरवरिण स-पिययमिण घिसि वराठ किं एहु एरिस । संपत्तउ विसम दस एह मज्झ विसयम्मि अ-सरिस ॥ ता वियरेमि इमस्सु इह तरुणिय इय चिंतंतु । तडि-पडणिण स-पिओ वि निवु मरिऊणं डझंतु ॥
मिहुण-भाविण हुयउ हरि-वरिसि स-पिओ वि-हु कप्प-तरु- दिण्ण-सयल-वछिय-समिद्धिउ । परिचिट्ठइ अहिलसिय- विसय-मुहिहिं ससि-सुद्ध-बुद्धिउ ।। इयरु वि तारिस-दुह-दविण संतवियंगोवंगु । अंतम्मि य कह-कह-वि कय- अन्नाणिय-तव-संगु ॥
[१९३७]
पढमु मुर-घरि अप्प-रिद्धीसु देवेसु तियसत्तणिण हुयउ तयणु जाणिवि विभंगिण । हरि-वरिसि सु सुमुहु निवु स-प्पिउ वि हुउ मिहुण-भाविण ॥ ता कोवारुण-नयणु तहं कुणइ निहणणोवाउ । चिट्ठइ पुणु मिहुणत्तणिण अ-प्पह विरु स-विसाउ ।।
* From here upto tanto in line 4 # is illegible. १९३५. ७. क. तरुणि व; ख. इ चिंततु.
१९३६. ७. क. संतविअं. १९३७. १. पढम.
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