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२९०१]
कण्हजरसंधविग्गहु
[२८९८]
कह कहं ति य पुहि कण्हेण साहंति नहयर-विलय के-वि गहिय वंधेहि खेयर। कि-वि पाडिय रण-महिहिं के-वि मुक्क नासिर अ-सुंदर । किं पुणु पच्छिम-दिणि मिलिवि सत्तु अ-णाइय-अंत । दुक्का वसुदेवह समरि विज्ज-वलिण दिप्पंत ॥
[२८९९] __ तयणु गंजिवि किंचि वसुदेवु जोयाविउ दिसि-मुहई जाव ताव दिव्वाणुहाविण । गयणंगणि सुर-गणिण भणिउ - जयउ मु जि एक्कु पर जिण ॥ सिरि-वसुदेव-तणुभविण वासुदेव-नामेण । स-वलु स-नंदणु मगहवइ हउ जरसंधु खणेण ॥
[२९००]
ता समग्गि वि खयर-रिउ-राय भय-कंपिर-देह-लय सरणि पत्त वसुदेव-रायह । संपइ पुणु आगमिर अछहिं पुरउ तुह चेव पायह ॥ अम्हे उण आइय पढमु तुह वद्धावण-हेउ । एत्यंतरि छाइय-तरणि- नहयर-निवह-समेउ ॥
[२९०१]
कण्ह-सविहिहिं पत्तु वसुदेवु तयणंतरु नहयरिहिं हरिहि विहिय-पय-पूय वहु-विह । पडिवज्जिवि सेव तमु गहिय आण सीसेण दुस्सह ॥ अह केसवु हय-गय-रहिहिं सुहड-सिरिहिं वड्ढंतु । कसु कसु न जणइ हरिसु मणि तेय-सिरिण दिप्पंतु ॥ २९... ६, क. अ for अम्हे.
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