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________________ २९२४ ] surafts [२९१९] दार - परिग्गहु करि हउं ताय इह पागय-रूविणिहि जर किज्जइ पारडी जइ लहि अणुरूव कवि इयरहा उ जायइ विडवण । महिलियाहि किं कीरए पुण ॥ मिच्छहं केरा कम्मु | तो वरि चित्तउ मारियइ जासु महग्घा चम्मु ॥ [२९२०] इयर महिला न रुच्चइ सुंदर महिलाण नत्थि संपत्ती । एमेव विरइ - परिवज्जिएहिं दियहा गमिज्जति ॥ [२९२१] इय परिभाविय - नीसेस - भव- सरूवो पिऊण वयणाइ । गंभीर - भासिएहिं पडिसेहइ स - विणयं नेमी || [२९२२] इत्तो य अवराजिय- सुरघरह सिरि-उग्गसेणह निवह अवयरिउण धूयत्तणिण जायउ पवर- दिणम्मि । ता सुय - जम्मम्मि व निविण किइ वद्धावणयम्मि | [२९२३] दिन्नु राइमइति अभिहाणु परिचवेविणु ठिइहि अंतम्मि Jain Education International 2010_05 जसमईए जिउ वर मुहुत्तिहिं । धारिणीए देवीए कुच्छिहिं ॥ अह वुढिहिं जाइ इह एत्तो य गयउरि नयरि सह-गुणेहिं यदि धवलिहिं । पंडवाण भवणम्मि कालिहिं ॥ कड्ढउ आयउ केलि पिउ नारउ विप्प - पहाणु । तसु पुणु कमवि दोवइहिं न तहा किउ सम्मा || [२९२४] तयणु कोविण धाइ - संडम्मि भरहस् य दाहिणहं थी-लोलह नरवहि पत्तउ नारउ अह निविण भणियउ दिट्ठ कहिं पि तिय एरिस अह हसिऊण || २९२४. ९. क. हसिउण, ख. हसिऊणं. दिसिर्हि अवरकंकाए नयरिहिं । पउमनाह - नामस्सु सविहिहिं ॥ अंतेउरि नेऊण | For Private & Personal Use Only ६५१ www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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