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[२९१९] दार - परिग्गहु करि हउं ताय
इह पागय-रूविणिहि जर किज्जइ पारडी
जइ लहि अणुरूव कवि इयरहा उ जायइ विडवण । महिलियाहि किं कीरए पुण ॥ मिच्छहं केरा कम्मु |
तो वरि चित्तउ मारियइ
जासु महग्घा चम्मु ॥
[२९२०] इयर महिला न रुच्चइ सुंदर महिलाण नत्थि संपत्ती । एमेव विरइ - परिवज्जिएहिं दियहा गमिज्जति ॥
[२९२१] इय परिभाविय - नीसेस - भव- सरूवो पिऊण वयणाइ । गंभीर - भासिएहिं पडिसेहइ स - विणयं नेमी || [२९२२]
इत्तो य
अवराजिय- सुरघरह सिरि-उग्गसेणह निवह अवयरिउण धूयत्तणिण जायउ पवर- दिणम्मि । ता सुय - जम्मम्मि व निविण किइ वद्धावणयम्मि | [२९२३]
दिन्नु राइमइति अभिहाणु
परिचवेविणु ठिइहि अंतम्मि
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जसमईए जिउ वर मुहुत्तिहिं । धारिणीए देवीए कुच्छिहिं ॥
अह वुढिहिं जाइ इह एत्तो य गयउरि नयरि
सह-गुणेहिं यदि धवलिहिं । पंडवाण भवणम्मि कालिहिं ॥
कड्ढउ आयउ केलि पिउ नारउ विप्प - पहाणु । तसु पुणु कमवि दोवइहिं न तहा किउ सम्मा || [२९२४]
तयणु कोविण धाइ - संडम्मि
भरहस् य दाहिणहं थी-लोलह नरवहि
पत्तउ नारउ अह निविण
भणियउ दिट्ठ कहिं पि तिय एरिस अह हसिऊण ||
२९२४. ९. क. हसिउण, ख. हसिऊणं.
दिसिर्हि अवरकंकाए नयरिहिं ।
पउमनाह - नामस्सु सविहिहिं ॥ अंतेउरि नेऊण |
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