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२४१४ ]
नवमभवि इंदकयनेमिथुइ
[२४१०] जलरुह-दल-सच्छाय-चरण पर-बुद्धि-परायण रागोरग-गण-गरुड लोभ-सागर-पारायण कुनय-कुसंग-कुवास-हास-मच्छर-नग-दारण अंतराय-परमाणु-निवह-रस-संचय-वारण ॥५
[२४११] असम-जरामय-मरण-वार मोहारि-महा-मह हरि-विरिंचि-हरि-वीर-मार-वल-समर-जयावह । किन्नरगण-दंभोलिपाणि नर-विसर-महत्तम तव नुवामि चरणारविंदमजरामर-सत्तम ॥६
[२४१२] अमर-निरंतर-समवसरण भू-मंडल-सुंदर कुंद-कुसुम-दल-धवल-दंत वर-वाणी-डंवर । मंदरचल-रमणीय-देह गंभीरिम-सागर सु-गुण-चित्त-सम-तुंग-चित्त जय-जंतु-दयावर ॥७
[२४१३] सोम स-दय सु-समिद्ध सिद्ध संवुद्ध निरामय लीला-केलि-विलास-दारु-दव सिद्धि-रमामय । परम-गरिम संसार-सलिल-संचय-संतारण देव देहि भव-विरहमखिल-दंदोलि-निवारण ॥८
॥ इतींद्राष्टकं समाप्तम् ॥
[२४१४] एवं संस्कृत-वचनैः प्राकृत-तुल्यैः प्रमोदतः स्तुत्वा । जिनवरमरिष्टनेमि पंचांगं प्रणमति सुरेशः ॥ २४१०. २. मण. ४. रसंचय. २४११.२. क. माल for °मारवल.'
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