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________________ ५३८ नेमिनाहचरिउ [ २३७३ [२३७३] पंडग-वण-सोमणसाइगयं हिमवंत-पमुह-ठाणाणुगयं । सव्वोसहि-सरिसव-कुसुम-भरं आणंति तुरिउ मट्टिय-नियरं ॥ [२३७४] हरियंदण-चुन्न-सुगंध-गणं उवणिति सुरा ण्हवणथमिण । [२३७५] इय सयलहि देविहि कय-जिण-सेविहि आणंतिहि ण्हवणंग-गणु । अच्चुय-सुरनाहिहिं हरिस-सणाहिहिं पूरिउ दिट्ठउं सहु गयणु॥ [२३७६] (२०)विमल-मणि-मउड-दिप्पंत-सिर-मंडलो तयणु भत्तीए समयच्चुयाखडलो । पवर-आहरण-वत्थेहि सोहंतओ फुरिय-मणि-रयण-किरणोह-भासंतओ॥ [२३७७] संगरक्खो स-परिसोस-सामाणिओ लोयपालेहिं सद्धिं स-वेमाणिओ। सत्त-अणिएहिं अणियाहिवेहि समं उव्वहंतो महंतं मणे संभमं ॥ [२३७८] करिहिं उक्खिवइ निट्ठविय-भावारिणो ण्हवण-कज्जेण तित्थयर-जिण-नेमिणो। चित्तरूवं सहस्सं सहस्संवरं भिण्ण-भिण्णं सु-कलसाण अट्ठा [२३७९] मणिमया एकि अन्ने य सोवन्निया कलस रेहंति विवुहेहिं संवण्णिया। के-वि पु*णु सेय-कलहोय-निम्माविया सुकइ-पुन्नेहिं सुरवरिहिं करि पाविया॥ [२३८०] कणय-+रुप्पुब्भवा कणय-रयणामया के-वि पुण रयण-रुप्पेहि निप्फन्नया । के-वि तवणिज्ज-मणि-रयण-संपन्नया के-वि पुणु ताण मज्झम्मि मट्टिय-मया॥ २२७३. २. सद्धि सव्वे विमाणिउ. *The portion from °णु (2379. 3.) to जि (2389. 2.) is based on ms. ख. only. २३८०. १. रूप्पुभवा. ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibr www.jainelibrary.org
SR No.002610
Book TitleNeminahacariya Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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