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[ ३०५७ ] इय थुणिय जणणि जणया कलस- सहस्सेहिं बहु वियप्पेहिं । निय मंदिर-मंदर गयममरिंदा थुणहिं नेमि जिणं ॥
[ ३०५८ ] न्हाओ कय वलि कम्मो दिव्वालंकार-भूसिय- सरीरो । जय - जणिय-महच्छरिओ सिरि-नेमि - जिणेसरो भयवं ॥ [३०५९] उत्तर - कुरु-नामाए सिवियाए रयण - कणय - मइयाए । जायव - देव-याए आरुह पहु जहा - विहिणा |
[ ३०६०] दिव्वे य रयण- सीहासणम्मि उवविसइ उभयओ तं च । वीयंति चामरेहिं सोहम्मीसाण - देविंदा ||
[३०६१] छत्तं सणं- कुमारो माहिंद-सुरेसरो पवर-खगं । भाहिवो सुरीसो गिण्हइ वर दप्पणं पयओ ॥
[ ३०६२] कलसं लंतग - नाहो मह - सुक्को सोत्थियं सहस्सारो । गिoes सरासण- वरं सिरिवच्छं पाणय- सुरिंदो |
[३०६३] नंदावतं पवरं तु अच्चुओ सेस-मंगले सेसा । नच्चंति अमर-वर-सुंदरीओ पुरओ जिदिस्स ||
[ ३०६४ ] नंदी - तूरेसु तओ समंतओ सुर-वरेहिं पहए । उक्खिता सा सिविया सहसेणं जायव-निवाणं ॥
[ ३०६५ ] तत्तो वर्हति एयं सुर-निवहा तुट्ट माणसा पुरओ । वज्र्ज्जति दुंदुहीओ पेच्छणयाई कुणंति सुरा ||
[३०६६] नच्चति अच्छराओ पहसिय हिययाओ विरह - विहुराओ । रोयंति जायवीओ रुप्पिणि- सिवएवि - पमुहाओ ||
[ ३०६७ ] कण्हो समुद्रविजयाइणो य वर - सिंधुरे आरूढा | तह तुरयारूढाओ जायव - कोडीओ वच्चति ॥
[ ३०६८ ] परिवारिऊण नेमि चउद्दिसि सुरवरा विमाणेहिं । छायंति अंवर-तलं निरंतरं कय-समुज्जोयं ॥
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