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नेमिषुत्तंतु [३१०६] इय भुवण-कप्प-तरुणो सिरि-नेमि-जिणाहिवस्स पासम्मि।
सोऊण पत्थुयत्थं विसाय-हरिसागओ कण्हो ॥ [३१०७] वज्जरइ जह - भयवं मुणीण वियरेमि पुण-वि वंदणयं ।
जह वञ्चामि न तइयं अच्चंत-दुहावहं पुहई ॥ [३१०८] अह भणइ जिणो - सुंदर इओ न तुह तारिसो हवइ मावो । तह वच्चंति अवस्सं उद्धं रामा अहो हरिणो ॥
[३१०९]
इय सुणेविणु पहुहु उवएसु कह-कहमवि नियय-मणु संठवेउ एगग्ग-चित्तिण। जिण-पवयण गुरुयणहं कुणइ पूय-सकारु भत्तिण ॥ चरणाचरणोदय-वसिण गहिउमसत्तु चरित्तु । गेण्हइ नियम-विसेस इहि सो ससि-निम्मल-चित्तु ॥
[३११०]
वउ गहंतहं कुणहुं न निवार वासासु न परियडई गिहह वहिहिं धम्मत्थु मेल्लिवि । तयणंतरु भव-विरय- हियय स-उरि हरि मुक्कलाविवि ॥ नाणाविह जायव-कुमर दिक्खिय नेमि-जिणेण । हरि-भारिय विअणेग-विह चरहिं चरणु भावेण ॥
[३१११]
भव-विरत्तउ सो-वि रहनेमि अणुजाणाविवि कह-वि जणय-जणणि मुहि-सयण-बंधव । पडिवज्जइ दिक्ख पहु- पुरउ तयणु इयरे-वि माणव ॥ सव्व-विरइ गेहंति कि-वि के-वि हु देस-चरित्तु । पंचाणुव्वय के-वि कि-वि ससि-निम्मलु सम्मत्तु ॥ ३११०. ६. क. नाणाविहु; ख. अवरे वि हु.
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