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२२५० ]
नवमभवि वसुदेववृत्तंतु
[२२४७]
इय निरिक्खिवि रुहिर-नरनाहपमुहाखिल-निव-निवह हरिस-भरिण मायहिं न पुहइहिं । तरुणी इव सउरि-गुण- रयण-माल धारहिं स-हियइहिं ॥ मागह-गणु पुणु गुण-लवु वि लेइ न इयर-भडाहं । पहिं सज्जण जह - चडइ को-इ न सउरि-वडाहं ॥
[२२४८]
तयणु सउरिण गरुय-हरिसेण असमाण-महूसविण तरुणि-रयणु रोहिणि विवाहिय । संपत्तावसरु निय- सुह-दुहाई भायहं पसाहिय ॥ अवरो उण नरवइ-निवहु निय-निय-ठाणि पहुत्तु । रुहिरवरोहिण सउरि ठिउ तहिं रोहिणि-संजुत्तु ॥
[२२४९]
अवर-अवसरि सुकय-जोगेण चत्तारि महा-सिविण नियवि निसिहिं सहसत्ति उहिय । सिरि विरइय-पाणि-पूड कहइ देवि दइयस्सु तुहिय ॥ सउरी उण पभणइ - सुयणु निय-कुल-नहयल-चंदु । हविहइ तुह नंदण-रयणु सुयण-भमर-अरविंदु ॥
इओ य
[२२५०]
आसि कत्थ वि पुर-विसेसम्मि दो वंधव सरिस-सुह- दुक्ख सुदढ-नेहाणुवंधय । अवरम्मि दियहि गय काणणम्मि ता गहिय-कट्ठय ॥ सगडारूढ गिहागमिर मग्गि महोरगि एग । गंडाहर-निवडिय नियहिं दो-वि ति विसम-विवेग ॥ २२४७. ३. क. पुइहिं.
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