________________
२८२३ ]
कण्हजरसंधविग्गहु
[२८२०]
इय विणिच्छिवि मह वि आएम पसिऊणं देह जह हउं वि किं-पि तोसेमि अप्पउं । तयणंतर उव्वरिय- निव-सहस्स-दसगउं स-दप्पडं ॥ वियरिउ सिसुपालह वि जरसंधिण खुहिय-मणेण । कंस-काल-मरणाइं पुणु सुमरिवि विहिहि वसेण ॥
[२८२१]
समर-धरणिहिं हणिय निय-रायगय-संख पलोइउण गरुय-खेय-वाउलिय-माणसु । जरसंधु नरिंदु सयमेव चलिउ संगहिय-साहसु ॥ एत्थंतरि रण-रंग-वस- पुलइय-अंगोवंगु । संचल्लिउ सत्तुहु समुहु हरि हरि-वंसह चंगु ॥
[२८२२]
किंतु मगहाहिवइ कु-निमित्तकु-स्सिमिण-कुसउण-सय- पडिनिसिज्झमाणु वि रणंगणि । पविसेइ मुरारि पुणु गरुय-हरिसु उव्वहिरु निय-मणि ॥ सउण-निमित्त-उवस्सुइहिं साहिय-जय-सिरि-लाहु । मिलियउ जरसंघह रिउहु निव-वंधविहिं सणाहु ॥
[२८२३]
तयणु दुण्ह-वि वलहं संजाउ रणु जायव-भड बहुय निहय खणिण मागहिय-मुहडिहिं । अह सारण-नामगिण सउरि-सुइण असमाण-सत्तिहि ॥ निहणिउ मगहेसरह मुउ निवइ जवण-अभिहाणु । तह जह तसु जीविउ खणिण दूरयरेण पलाणु ॥ २८२०. ६. क. वियरिय; ७. क. ख. जरसंघेण.
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org