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नवमभवि वसुदेववृत्तंतु [२१२१]
अह वियाणिय-पगय-पुत्ततु नीसेसु वि नयर-जणु विहिय-विविह-सम्माणु सउरिहि । वियरेइ महायरिण सयई पंच निय-नियय-कुमरिहि ॥ वसुदेवो वि हु काउ निय- सत्तहं तरुणिउ ताउ । अयलगामि सत्थाह-घरि एगयरम्मि पराउ ।।
[२१२२]
मित्तसिरि इय नामु त कन्न परिणीय महा-महिण गमइ दियह सह तीए मुक्खिण । अवरम्मि उ दिणि सउरि- पुरउ भणिउ एगिण मणूसिण ॥ वेयसम्म-नामम्मि पुरि निवइ कविल-अभिहाणु । चिट्टइ कविला-नाम तमु धुय गुरु-गुणहं निहाणु ॥
[२१२३]
तसु निमित्तिण कहिउ हिरिमंतसिहरिम्मि समागयउ पाण-नाहु वसुदेव-नामगु । आणयण-पओयणिण इंदयालि-गुरु इंदसम्मगु ।। तसु सविहिहिं पेसिउ निविण सो वि-हु तं गहिऊण । जा चलियउ ता तमु नयण- मग्गु अइक्कमिऊण ।।
[२१२४]
गयउ कत्थ-वि झत्ति वसुदेवु इयरेण वि नरवइहिं कहिउ सयलु पुव्वुत्तु वइयरु । नरनाहु वि संसइउ हुयउ जाव ता भणइ इगु नरु ॥ जह - पहु तिण नेमित्तिइण अवरु वि अस्थि कहीउ । जा फुलिंगवयणु त्ति तुह तुरउ दमेइ गहीउ ॥ २१२१. १. क. वियारइ.
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