________________
[१९४२
नेमिनाहचरिउ [१९४२]
अह सु तियसह तस्सु वयणेण आरोविवि रह-रयणि नयर-मज्झि निउ गरुय-रिद्धिण । संतुट्ठउ हुयउ पुर- जणु वि सयल निय-कज्ज-सिद्धिण ॥ कम-जोगेण य हरि-निवइ साहिय-रिउ-कुल-वूहु । हुयउ पसिद्धउ धरणि-यलि पणमिर-राय-समूहु ॥
[१९४३]
तियस-सत्तिण मंस-असणिण वि हुय लहुयर-आउ-ठिइ तत्थ तस्सु हरि-धरणिरायह । ता मरिउण सु स-पिउ वि हुयउ ठाणु दुग्गइ-निवायह ॥ तह हरि-वंसह आणियउ जुयलु तेण हरि-वसु । हरिहि व जायउ एहु इय हुउ पसिद्ध हरि-वंसु ॥
[१९४४]
हवइ एरिसु जुयल-अवहारु पुणणंत-कालह कह-वि भणिउ एहु तित्थाहिराइहि । एत्तो च्चिय अच्छरिय- दसगि पढिउ परमत्थ-वाइहि ॥ तं पुण नायव्वउं इमह गाहा-जुयह वसेण ।
सीसिण आ-वालोवचिय- जिण-उवएस-वसेण ॥ जहा -
[१९४५] उवसग्ग-गब्भहरणं इत्थी तित्थं अ-भविया पुरिसा । कण्हस्स अवरकंका अवयरणं चंद-सूराणं ॥
[१९४६] हरिवंस-कुलुप्पत्ती चमरुप्पाओ य अट्ठ-सय सिद्धा । अस्संजयाण पूया दस वि अणंतेण कालेण ॥
१९४२. The portion from after सा° in line 7 to स in liya 4 in 1943 is missing in ख. १९४३. ५. क. दुग्गय. ६. ख. हरिवरिसह.
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org